औरंगजेब का पूरा इतिहास

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औरंगजेब (1658-1707 ई.)


 औरंगजेब का जन्म 3 नवम्बर 1618 को उज्जैन के दोहद नामक स्थान पर हुआ था। सिंहासन पर बैठने से पहले यह दक्षिण भारत का गवर्नर था। औरंगजेब ने आलमगीर की उपाधि धारण की। उसने नौरोज उत्सव की सलाह के अनुसार इस्लामी ढंग से राज किया।


 उसने ‘नौरोज उत्सव’ तथा ‘झरोखा दर्शन’ (जो अकबर ने शुरू किया था) समाप्त कर दिया।


 उसने राज्य की गैर-मुस्लिम जनता पर पुनः ‘जजिया’ लगा दिया। औरंगजेब ने हिन्दू त्यौहारों को सार्वजनिक रूप से मनाये जाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया। 


 उसने राज्य में सार्वजनिक रूप से नृत्य तथा संगीत पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया (यद्यपि व्यक्तिगत जीवन में वह खुद एक कुशल वीणा वादक था। ) अपने व्यक्तिगत चारित्रिक गुणों के कारण औरंगजेब को ‘जिन्दा पीर’ के नाम से जाना जाता है।


 उसने 1686 ई. में बीजापुर तथा 1687 ई. में गोलकुण्डा को जीतकर मुगल साम्राज्य में मिला लिया।


 औरंगजेब ने अपनी पत्नी रबिया दुर्रानी की याद में 1678 ई. में औरंगाबाद में एक मकबरा बनवाया जो ‘बीबी का मकबरा’ नाम से प्रसिद्ध है। इसे ताजमहल की फूहड़ नकल माना जाता है तथा ‘दक्षिण का ताजमहल’ भी कहा जाता है।


 औरंगजेब के समय में मुगल साम्राज्य क्षेत्रफल की दृष्टि से चरमोत्कर्ष पर था।


 औरंगजेब के समय में जाट विद्रोह (गोकुल एवं राजा राम के नतेत्व में 1669 ई.) सतनामी विद्रोह (1672 ई.) सिक्ख विद्रोह एवं राजपूत विद्रोह (1678 ई.) हुए। उसने सार्वजनिक सदाचार के लिए ‘मुहतासिव’ नियुक्त किए।


 हिन्दू मनसबदारों की सर्वाधिक संख्या इसी के शासनकाल में थी। औरंगजेब की मृत्यु 1707 ई. में हुई इसे दौलताबाद में स्थित फकीर बुरहानुद्दीन की क्रब के अहाते में दफनाया गया।


उत्तर मुगल शासक


औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् जो मुगल शासक आए, वे सभी सामान्यत: अयोग्य थे :-


 बहादुर शाह प्रथम (शाहे बेखबर) (1707-1712 ई.)


 जहाँदर शाह (लम्पट मूर्ख) (1712-1713 ई.) 


 फर्रुखसियार (घृणित कायर) (1713-1719 ई.)


 मोहम्मद शाह (रंगीला) (1719-1748 ई.) – 


मिस्र के राजा नादिरशाह ने इसे करनाल के युद्ध (1739 ई.) में हराया था और मयूर सिंहासन और कोहिनूर हीरा भारत से ले गया था।


Note:-


  1.  जहाँदर शाह ने व्यापारिक गतिविधियों के उद्देश्य से अंग्रेजों के लिए ‘फरमान पर हस्ताक्षर किए।
  2. अन्तिम मुगल सम्राट बहादुर शाह द्वितीय जफर ने 1857 ई. के विद्रोह का केन्द्रीय नेतृत्व किया।
  3. विद्रोह के दमन के बाद बहादुर शाह जफर को उसकी पत्नी जीनत महल के साथ बर्मा के रंगून स्थित माण्डले जेल में रखा गया। उसकी मृत्यु वहीं हुई एवं उसका मकबरा रंगून में ही स्थित है
  4. अहमदशाह (1748-1754 ई.)
  5. आलमगीर द्वितीय (1754-1759 ई.)
  6. शाहआलम द्वितीय (1759-1806 ई.) –


इसने अवध के नवाब शुजाउद्दौला और बंगाल के नवाब मीर कासिम के साथ मिलकर 1764 ई. में अंग्रेजों के विरुद्ध बक्सर का युद्ध लड़ा था, परन्तु हार गया था।


अकबर द्वितीय (1806-1837 ई.) 


  • अकबर द्वितीय ने 1833 ई. में राजा राममोहन राय को अपनी पेंशन बढ़वाने इंग्लैण्ड भेजा।
  • बहादुर शाह द्वितीय (1837-1857 ई.)


मुगल प्रशासन/अर्थव्यवस्था


 मुगल साम्राज्य सूबों में विभाजित था। अकबर के समय सूवों की संख्या 15 थी। औरंगजेब के समय इनकी संख्या 20 हो गई। सूबेदार को निजाम या सिपहसालार कहा जाता था।

 दीवान जिसे वजीर भी कहा जाता था, वित्त एवं राजस्व का सर्वोच्च अधिकारी होता था।


मुगलकाल में भूमि के तीन प्रकार थे 


1. खालसा भूमि बादशाह के नियन्त्रण की भूमि

2. जागीर भूमि तनख्वाह के बदले दी जाने वाली भूमि 

3. मदद ए माश अनुदान में दी जाने वाली भूमि मन्त्रिपरिषद् को विजारत कहा जाता था।


औरंगजेब के समय में ‘असद खान’ ने सर्वाधिक 31 वर्षों तक दीवान के पद पर कार्य किया। 


 सम्राट के घरेलू विभागों का प्रधान मीर समान कहलाता था। सेना का प्रधान मीरबख्शी होता था।

 अकबर ने ‘मनसबदारी प्रथा’ का आरम्भ किया, जो मंगोलों की सैन्य प्रणाली से लिया गया था।

 अकबर ने लगान व्यवस्था को प्रभावी बनाया।

 जहाँगीर ने ग्यास बेग को शाही दीवान बनाया एवं एतमाद-उद-दौला की उपाधि दी।

 शाहजहाँ ने दिल्ली में एक कॉलेज का निर्माण एवं दारुल बका नामक कॉलेज की मरम्मत कराई।

 जात से व्यक्ति के वेतन एवं प्रतिष्ठा का ज्ञान होता था, सवार पद से घुड़सवार दस्तों की संख्या का ज्ञान होता था।

 प्रत्येक सूबा सरकार अथवा जिलों में बँटा था। सरकार का प्रमुख फौजदार होता था। सरकार परगनों में विभाजित था। परगने का प्रमुख अधिकारी ‘शिकदार’ होता था।

 आमिल, कानूनगो, राजस्व देखते थे। मुगलों के पास विशाल स्थायी सेना थी। सैन्य अधिकरियों को मनसब प्रदान किया जाता था।

 अकबर ने सोने का सिक्का इलाही चलाया। चाँदी का सिक्का रुपया कहलाता था, जिसका वजन 172.5 ग्रेन था।

 दाम (ताँबा) तथा जीतल (ताँबा) अन्य सिक्के थे। जहाँगीर ने सिक्कों पर अपनी आकृति अंकित कराई थी।

मुगल चित्रकला

➤ अकबर के दरबार के चित्रकार अब्दुल समद, दशवंत एवं बसावन थे।

 हम्जनामा प्रमुख चित्र था, जिसका निर्माण अब्दुल समद की देख-रेख में पूरा किया गया।

 जहाँगीर ने मुगल चित्रकला को अत्यधिक प्रोत्साहन दिया उसने अबुल हसन को ‘नादिर-उल-जमात’ तथा मंसूर को ‘नादिर-उल – अस्त्र’ की उपाधि दी।

 अगारजा, मुहम्मद नादिर, मुराद, बिशनदास, मनोहर इत्यादि जहाँगीर के दरबारी चित्रकार थे। जहाँगीर ने विशनदास को ईरान के शासक शाह तहमास्य का चित्र बनाने के लिए ईरान भेजा था।

 शाहजहाँ के समय फकीर उल्ला, मीर हाशिम तथा अनूप प्रमुख चित्रकार थे।

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